
अम्बिकापुर। सरगुजा जिले की पहाड़ियों में बसा एक प्राचीन मंदिर आज भी लोगों की नजरों से छुपा हुआ है। अम्बिकापुर-रायगढ़ नेशनल हाईवे (NH-43) पर रघुनाथपुर से पुरकेला मार्ग की ओर स्थित गादी पहाड़ दुर्गा मंदिर अपनी खास धार्मिक परंपरा और आस्था का केंद्र बनता जा रहा है।
इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां कभी बलिप्रथा नहीं रही, बल्कि केवल नारियल चढ़ाकर माता दुर्गा को प्रसन्न किया जाता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि जो भी भक्त सच्चे मन से अपनी मुराद लेकर इस मंदिर में आता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।
दुर्गा प्रतिमा का चमत्कारी उद्भव
गादी पहाड़ की इस पवित्र जगह का इतिहास 1980 से जुड़ा है। स्थानीय पुजारी महेश नामदेव बताते हैं कि पहले यह स्थान ‘गादी पहाड़ देवता’ के नाम से जाना जाता था। बाद में NH-43 के किनारे स्थित पुराइन तालाब की सफाई के दौरान दुर्गा माता की एक प्रतिमा मिली, जिसे गांव के बुजुर्गों और बैगा समाज के लोगों द्वारा विधिवत पूजन के बाद गादीपहाड़ में स्थापित किया गया।
बीस गांवों की श्रद्धा का केंद्र
आज यह मंदिर आसपास के 20 से अधिक गांवों के लोगों की श्रद्धा का केंद्र बन चुका है। यहां हर साल रामनवमी के अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त माता के दर्शन कर नारियल चढ़ाते हैं और मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
न सड़क, न सुविधाएं – फिर भी नहीं कम हुई श्रद्धा
मंदिर तक पहुँचने का रास्ता आज भी कच्चा और दुर्गम है, जिसे स्थानीय ग्रामीणों ने श्रमदान से तैयार किया है। हालांकि अब यहां बिजली और पानी की सीमित व्यवस्था हो चुकी है, जिसके कारण श्रद्धालुओं की आवाजाही में थोड़ी सुविधा जरूर हुई है।
स्थानीयों की मांग – हो पक्की सड़क का निर्माण
स्थानीय निवासियों और मंदिर के संरक्षक महेश नामदेव की एक ही मांग है – “यदि यहां तक पक्की सड़क बन जाए, तो दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं को बहुत राहत मिलेगी। माता के प्रति लोगों की आस्था और भी बढ़ेगी।”
गादी पहाड़ दुर्गा मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और समर्पण की मिसाल है। बलिप्रथा से दूर रहकर नारियल जैसे सरल प्रसाद के माध्यम से मनोकामनाएं पूरी करने वाली माता दुर्गा का यह मंदिर निश्चित ही पर्यटन और धार्मिक मानचित्र में एक विशेष स्थान पाने योग्य है।
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