आज हमर छत्तीसगढ़ म पोरा तिहार ये खेती भुइयां अऊ गौ मन के मान ल राखे बर ये तिहार ल मनाथे।
!! पोरा तिहार !!
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पोरा तिहार हे
पोरा तिहार हे।
देखव रे संगी
मया के दुलार हे।।
सुग्घर लगत हे
घर अऊ दुवार।
लीपे अऊ पोते हे
खिले फूल मदार।।
जतवा हे चक्की हे
माटी के हे चूल्हा।
मया के प्रीत हे
बैइला हे दूल्हा।।
नंदी के पूजा करथे
माटी के सन्मान म।
जश ल ओखर गाथे।
लईका मन गुमान म।।
खुरमी अऊ ठेठरी के
भोग ल लगाथे।
गुलगुल भजिया के
सेवाद ल कराथे।।
निक बड़ा लागत हे
जूरे हे संगवारी।
पोरा तिहार हे
कहत हे महतारी।।
रचना-
प्रो. डीपी कोरी
प्राचार्य
शासकीय महाविद्यालय, विश्रामपुर