बांग्लादेश पहले भारत हुआ करता था। वहां रहने वाले हिंदू संप्रदाय के लोग आज बहुत दुखी है। अपने आप बीती सुना रहे हैं।
!! प्रश्नचिन्ह !!
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आंखों में है आंसू
हृदय में है पीड़ा।
बताएं कैसे किसको
उठाएंगे कौन बीड़ा।।
नफरतों के बीज से
सींच रहा है पानी।
उसूल है अपनी अपनी
बन बैठे हैं दानी।।
दीवारें बढ़ने लगी
वर्चस्व का बाजार।
दर्द है इस कदर
हो गए है लाचार।।
हम बांग्ला हिंदू है
जैसे पाक मे सिंधू है।
शब्दों में बिंदु है
नभ मे जैसे इंदु है।।
होने लगे शिकार
तन का न ठिकाना।
रपट लिखाए कहां
उजड़े हैं आशियाना।।
कुछ तो बोले है
हो गए है कुछ मौन।
सबकी अपनी मर्जी है
पूछने वाले है कौन?
रचना-
प्रो. डीपी कोरी
प्राचार्य
शासकीय महाविद्यालय, विश्रामपुर