जिस देश की सभ्यता और संस्कृति को स्रुतियो ने गाई है, हे! केशव आज इस देश की यैसी दुर्दशा।
!! गुहार !!
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सड़क पर आह्वान है
न्याय की गुहार है।
बेटी की बात है
हृदय से पुकार है।।
गंगा की पानी जैसे
बेटी है सुचिता।
घर में है हलचल
बहे है जैसे सरिता।।
अस्मत की सवाल है
देख लो रे दुनियां।
भौकें है गली गली
न्याय कितनी दूरियां।।
सिर पर तलवार है
आएंगे बारी बारी।
देह में संस्कार है
जड़ता को है तारी।।
गोपी थी अनपढ़
ज्ञान का श्रृंगार।
माधव के चरणों मे
प्रेम का अलंकार।।
दुषित हो गई हवाएं
गरल है हजार।
जगाना है सबको
तिलिस्म है बाजार।।
रचना-
प्रो. डीपी कोरी
प्राचार्य
शासकीय महाविद्यालय, विश्रामपुर