
28 सितंबर – विश्व रेबीज दिवस
अम्बिकापुर। रेबीज वायरस से होने वाली बीमारी दुनिया की सबसे खतरनाक जूनोटिक बीमारियों में गिनी जाती है। यह जानवरों से मनुष्यों में फैलती है, विशेषकर कुत्ते, बिल्ली, लोमड़ी और सियार जैसे जानवरों के काटने पर उनकी लार से संक्रमण होता है। सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि रेबीज होने के बाद इसका इलाज संभव नहीं है और 100% मौत निश्चित है। लेकिन समय पर टीकाकरण करवाकर इस बीमारी से 100% बचाव किया जा सकता है।
क्यों मनाया जाता है विश्व रेबीज दिवस
हर साल 28 सितंबर को विश्व रेबीज दिवस मनाया जाता है। यह दिन महान वैज्ञानिक लुई पाश्चर की पुण्यतिथि है, जिन्होंने रेबीज का टीका खोजा था। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य लोगों को जागरूक करना और रेबीज से होने वाली मौतों को रोकना है।
कैसे फैलता है संक्रमण
– लगभग 99% मामले कुत्तों के काटने से होते हैं
– अन्य जानवरों से संक्रमण केवल 1% मामलों में फैलता है
रेबीज के लक्षण
– शुरुआती अवस्था में फ्लू जैसे लक्षण
– नर्वस सिस्टम पर असर
– लार का लगातार बहना
– आक्रामक व्यवहार और आदेश न मानना
– खाना-पीना छोड़ देना
– दूसरों को काटने की प्रवृत्ति
बचाव के उपाय
– पालतू कुत्तों को पशु चिकित्सक की सलाह से रेबीज का टीका अवश्य लगवाएं
– हर वर्ष समय पर बूस्टर डोज दिलाएं
कुत्ता काट ले तो क्या करें
1. घाव को कार्बोलिक साबुन और बहते पानी से कम से कम 10 मिनट तक धोएं
2. घाव पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाएं
3. बिना देर किए चिकित्सक से संपर्क कर टीकाकरण करवाएं
4. झाड़-फूंक या अंधविश्वास में बिल्कुल न पड़ें, यह जानलेवा साबित हो सकता है
मौतों के आंकड़े
– दुनिया में हर साल लगभग 60 हजार मौतें
– भारत में प्रतिवर्ष करीब 20 हजार मौतें
रेबीज एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज संभव नहीं है, लेकिन जागरूकता और समय पर टीकाकरण से इसे पूरी तरह रोका जा सकता है। समाज को मिलकर यह संदेश फैलाना होगा कि बचाव ही इसका सबसे बड़ा उपचार है।
लेखक:
डॉ. सी.के. मिश्रा
अतिरिक्त उप संचालक, पशुधन विकास विभाग, सरगुजा