एक ऐसा स्थान जहां देवताओं की नहीं, बल्कि बकासुर दानव की होती है पूजा, आशीर्वाद से पूरी होती हैं श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं


सूरजपुर/राजेश राजवाड़े। क्या आपने कभी किसी ऐसे स्थान के बारे में सुना है जहां देवताओं या देवी की नहीं, बल्कि एक दानव की पूजा होती हो? छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के एक छोटे से गांव खोपा में स्थित देवधाम इसी अनोखी परंपरा का प्रतीक है। जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह धाम न केवल आसपास के गांवों का आस्था केंद्र है, बल्कि छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों से भी लोग यहां अपनी मन्नतें मांगने आते हैं। यहां के दानव बकासुर को लोग एक शक्तिशाली देवता मानते हैं जो अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं।

बकासुर दानव की अनोखी कहानी और पूजा की परंपरा

खोपा गांव की इस धार्मिक परंपरा की जड़ें एक दिलचस्प कहानी में छिपी हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, बकासुर नामक दानव इस गांव से गुजरती नदी में रहता था। एक बार उसने गांव के बैगा जाति के युवक से प्रसन्न होकर गांव के बाहर एक स्थान पर निवास करना शुरू कर दिया। उसने बैगा जाति के लोगों को ही अपनी पूजा का अधिकार दिया, जो आज भी केवल उन्हीं के द्वारा संपन्न होती है।

यहां बकासुर दानव की पूजा का तरीका भी अन्य धार्मिक स्थलों से बिल्कुल अलग है। मन्नत मांगने वाले श्रद्धालु लाल कपड़ा बांधते हैं और नारियल, तेल, और सुपारी के साथ बकासुर की आराधना करते हैं। मन्नत पूरी होने पर बकरा, देसी मुर्गा और शराब चढ़ाने की परंपरा है। यहां के बैगा मानते हैं कि इस धाम में आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना बकासुर देवता पूरी करते हैं।

क्यों नहीं है मंदिर का निर्माण?

आज तक खोपा धाम में कोई मंदिर नहीं बनाया गया है। इसके पीछे भी एक रहस्य है। कहा जाता है कि बकासुर ने स्वयं ही गांव वालों से कहा था कि वह खुले में ही रहना चाहता है और उसका कोई मंदिर न बनाया जाए। इसी कारण, सैकड़ों वर्षों से यहां पूजा खुले में ही होती आ रही है।

प्रसाद की अनोखी परंपरा: महिलाओं के लिए निषेध

यहां की एक और रोचक बात यह है कि इस धाम का प्रसाद महिलाएं नहीं खा सकतीं और इसे घर भी नहीं ले जाया जा सकता। एक समय था जब महिलाओं का इस धाम में प्रवेश वर्जित था, लेकिन आजकल महिलाएं भी बड़ी संख्या में यहां आती हैं और मन्नतें मांगती हैं।

खोपा धाम: आस्था और रहस्य का संगम

खोपा देवधाम का बकासुर दानव की पूजा से जुड़ा रहस्य, आस्था और अनोखी परंपराएं इसे छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में चर्चा का विषय बनाती हैं। लोग यहां दूर-दूर से अपनी इच्छाओं को पूरा करने की आशा लेकर आते हैं, और बकासुर देवता के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।


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